श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥ श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। https://shivchalisalyricsinmarath55923.jiliblog.com/87062580/the-5-second-trick-for-lyrics-of-shiv-chalisa